सूनी एक ठंडी छाओं लिये
एक परिंदा था और एक मैं गुज़रा
मेरे सामने थी एक सूखी डाली सी
फुदक के परिंदा उस पर से गुज़रा
शाम के लम्स को ओढ़े हुए
मैं भी एक अकेला सा था गुज़रा
वो हैरां था मैं भी कुछ ऐसा ही
छाँव लेने दरख्त से सिमटते थे
शामें लम्बी थी रात सूनी थी
एक लम्हा जो अथक था गुज़रा
वो चैन पाता था किसी डाली पर
मैं इंसान था तो समझ से गुज़रा
शामें नहीं हैं उड़ने के लिये
खुलापन उदास रहता है
वो आसमां था जो उस पर गुज़रा
मैं इन्सां था जो ज़मीं पर गुज़रा
खुश नहीं मैं भी कि अकेला था
उदास वो भी कई डाली गुज़रा
एक लम्हा था जो तेरे लिये
शायद वो उदास उसी पर गुज़रा
मैंने रोका उसे एक करीबी डाली पर
पर वो तनहा था उड़ कर गुज़रा
दरख़्त थामते नहीं थे उसे अपनी बाहों में
वो परिंदा था फुदक कर गुज़रा
मेरी डाली झुकी थी किसके लिए
मैं इंसान था तो समझ से गुज़रा।
~ सूफी बेनाम
एक परिंदा था और एक मैं गुज़रा
मेरे सामने थी एक सूखी डाली सी
फुदक के परिंदा उस पर से गुज़रा
शाम के लम्स को ओढ़े हुए
मैं भी एक अकेला सा था गुज़रा
वो हैरां था मैं भी कुछ ऐसा ही
छाँव लेने दरख्त से सिमटते थे
शामें लम्बी थी रात सूनी थी
एक लम्हा जो अथक था गुज़रा
वो चैन पाता था किसी डाली पर
मैं इंसान था तो समझ से गुज़रा
शामें नहीं हैं उड़ने के लिये
खुलापन उदास रहता है
वो आसमां था जो उस पर गुज़रा
मैं इन्सां था जो ज़मीं पर गुज़रा
खुश नहीं मैं भी कि अकेला था
उदास वो भी कई डाली गुज़रा
एक लम्हा था जो तेरे लिये
शायद वो उदास उसी पर गुज़रा
मैंने रोका उसे एक करीबी डाली पर
पर वो तनहा था उड़ कर गुज़रा
दरख़्त थामते नहीं थे उसे अपनी बाहों में
वो परिंदा था फुदक कर गुज़रा
मेरी डाली झुकी थी किसके लिए
मैं इंसान था तो समझ से गुज़रा।
~ सूफी बेनाम
Ishwar aankhen thak gayi par man nahi bhara bahut khoob.....
ReplyDeleteIshwar aankhen thak gayi par man nahi bhara bahut khoob.....
ReplyDelete
ReplyDeleteधन्यवाद रश्मी।