एक दिन अकेले में निबट लेंगे उससे
वो अपनों के बीच बेसाध हुई जाती है
जिस तलक मिलती है मुझसे सिर्फ मेरे लिये
उस लम्हा-ए-ज़िन्दगी को उम्र समझ लेते हैं।
तुम बुझा दो ये जस्ब, ये गम के रिश्ते
मोहब्बत दूरियों को अंजाम देने आयी है
कब तलक शर -ए-आगोश में रहेंगे बस्ते
फ़िज़ा रंग-ए -हिना बन के चली आयी है।
कोई चाहता था ये बहुत था ज़िन्दगी के लिये
आदत-ए-इनायात नया सबब ले के आयी है
ख़्वाबों का दीद हुआ उसे ज़बीं से मिटाने को
एक सोज़ सुबह जाह-ओ-हाशम बिठाने आयी है।
~ सूफी बेनाम
जाह-ओ-हाशम - rank and dignity
वो अपनों के बीच बेसाध हुई जाती है
जिस तलक मिलती है मुझसे सिर्फ मेरे लिये
उस लम्हा-ए-ज़िन्दगी को उम्र समझ लेते हैं।
तुम बुझा दो ये जस्ब, ये गम के रिश्ते
मोहब्बत दूरियों को अंजाम देने आयी है
कब तलक शर -ए-आगोश में रहेंगे बस्ते
फ़िज़ा रंग-ए -हिना बन के चली आयी है।
कोई चाहता था ये बहुत था ज़िन्दगी के लिये
आदत-ए-इनायात नया सबब ले के आयी है
ख़्वाबों का दीद हुआ उसे ज़बीं से मिटाने को
एक सोज़ सुबह जाह-ओ-हाशम बिठाने आयी है।
~ सूफी बेनाम
जाह-ओ-हाशम - rank and dignity
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