Tuesday, July 21, 2015

एक दिन अकेले में निबट लेंगे

एक दिन अकेले में निबट लेंगे उससे
वो अपनों के बीच बेसाध हुई जाती है
जिस तलक मिलती है मुझसे सिर्फ मेरे लिये
उस लम्हा-ए-ज़िन्दगी को उम्र समझ लेते हैं।

तुम बुझा दो ये जस्ब, ये गम के रिश्ते
मोहब्बत दूरियों को अंजाम देने आयी है
कब तलक शर -ए-आगोश में रहेंगे बस्ते
फ़िज़ा रंग-ए -हिना बन के चली आयी है।

कोई चाहता था ये बहुत था ज़िन्दगी के लिये
आदत-ए-इनायात नया सबब ले के आयी है
ख़्वाबों का दीद हुआ उसे ज़बीं से मिटाने को
एक सोज़ सुबह जाह-ओ-हाशम बिठाने आयी है।
~ सूफी बेनाम

जाह-ओ-हाशम - rank and dignity





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