Sunday, January 15, 2017

निगाह -ए-कलम से हमें अब तराशो

हमारी अदीब शायरा पूजा कनुप्रिया जी के मिसरे में गिरह दे कर ग़ज़ल की कोशिश
122 122 122 122
अरकान,,
फ़ऊलुन, फ़ऊलुन ,फ़ऊलुन , फ़ऊलुन
काफ़िया.... ख़तावार(आर )
रदीफ. = तुम भी

गिरह:
शराफत बनी रात में वो क़यामत
ख़तावार मैं भी, ख़तावार तुम भी

मतला:
इरादे वस्ल के खतवार तुम भी
न चाहत न सिलवट हो क्या यार तुम भी

जला दो मिटा दो ज़रा आग देकर
ये मुर्दा खलिश है औऱ आसार तुम भी

चिपकने लगी गर्द ख्वाइश से आँखें
जला सा हूँ मैं और अंगार तुम भी

ये समझो फ़िज़ा में गुज़रता समय है
बिता कर ग़ुज़ारो हो दरकार तुम भी

निगाह -ए-कलम से हमें अब तराशो
गुनाह -ए-मोहब्बत के फनकार तुम भी

अइंदा किसी दौर में तुम न मिलना
अगर हो नहीं आज रुखसार तुम भी

~ सूफ़ी बेनाम









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