तुममें मुझको उसकी परछाईं दिखती है
उसकी सौबत में रहती खुशबू कितनी है
जलता दिन है तस्वीरों के छल का मारा
करवट ने चाहत की सुनवाई रखली है
बदला बदला युग जीवन है मौसम सारा
कुछ चहरों पे नयनों की सीढ़ी मिलती है
आराइश है यौवन चितवन चित रग-धारा
ढाढ़स लब-कोशों में निशचित भरती है
तुम क्यों बीते बीते हो आओ संग बैठो
मद पुररौनक आँचल से अबतक छलकी है
कह दो की मिथ्या है ये मेरी जीवनधारा
सच के कोरेपन में भरपाई असली है।
~ सूफ़ी बेनाम
(2x12)
~ सूफ़ी बेनाम
उसकी सौबत में रहती खुशबू कितनी है
जलता दिन है तस्वीरों के छल का मारा
करवट ने चाहत की सुनवाई रखली है
बदला बदला युग जीवन है मौसम सारा
कुछ चहरों पे नयनों की सीढ़ी मिलती है
आराइश है यौवन चितवन चित रग-धारा
ढाढ़स लब-कोशों में निशचित भरती है
तुम क्यों बीते बीते हो आओ संग बैठो
मद पुररौनक आँचल से अबतक छलकी है
कह दो की मिथ्या है ये मेरी जीवनधारा
सच के कोरेपन में भरपाई असली है।
~ सूफ़ी बेनाम
(2x12)
~ सूफ़ी बेनाम
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.