वज़्न - 1222 1222 122
अर्कान - मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फऊलुन
बह्र - बह्रे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
काफ़िया - आना
रदीफ़ - जानता है
मतला :
सदा पागल ज़माना जानता है
मुहब्बत की हक़ीक़त जानता है
ज़रा अंगुली को तुम बंदी बना लो
खुली ज़ुल्फें फसाना जानता है
हमें माथे की वो बिन्दी बनाकर
रस्म दिल की निभाना जानता है
निशानी शीर पे बनता नहीं जब
बना झुमका झुलाना जानता है
हमें खोंसा रहा उसने कमर में
वो अंगुली से नचाना जानता है
कभी बिछिया सजी पायल पहनकर
ग़ुलामी भी कराना जानता है
हमें मंज़ूर है उसकी हिरासत
जो हमको गुनगुनाना जानता है
~ सूफ़ी बेनाम
अर्कान - मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फऊलुन
बह्र - बह्रे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
काफ़िया - आना
रदीफ़ - जानता है
मतला :
सदा पागल ज़माना जानता है
मुहब्बत की हक़ीक़त जानता है
ज़रा अंगुली को तुम बंदी बना लो
खुली ज़ुल्फें फसाना जानता है
हमें माथे की वो बिन्दी बनाकर
रस्म दिल की निभाना जानता है
निशानी शीर पे बनता नहीं जब
बना झुमका झुलाना जानता है
हमें खोंसा रहा उसने कमर में
वो अंगुली से नचाना जानता है
कभी बिछिया सजी पायल पहनकर
ग़ुलामी भी कराना जानता है
हमें मंज़ूर है उसकी हिरासत
जो हमको गुनगुनाना जानता है
~ सूफ़ी बेनाम
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