कवि एकाकी जीव है,
पटल पर कुछ लोगों का मिलना
दोस्ती हो जाना
सब अनायास था, खुद बा खुद होता गया।
शुरू में उनके अल्फ़ाज़ों की कुलबुलाहट
उनके जस्बातों के दर्पण ....
लगने लगा की सबमें
मैं ही हूँ।
खुद को उनमें देखते-देखते
वाह-वाह करते एक लम्बा अरसा गुज़ारा हमने
कोई मुझे अपने छंदों से बाइस साल का महसूस करवाता
कोई ग्रीष्ममयी जीवन-व्यथा की प्यास मुस्कुराकर बुझाता।
फिर क्या था
ग़ज़ल का दौर चला
छंदों को बहर में बाँधा
और हर ख्याल को मन कानन के अँधेरे में भींच कर कलम किया।
लिखने की हवस बढ़ती रही
मेरे भीतर के इंसान को ढक कर
शायद मैं भी कवि सा हो गया
शायद कहीं कागज़ पे खो गया।
पर आज जगा हूँ
तो खुद को समेटना मुमकिन नहीं है
कुछ हूँ साथ अपने
कुछ दोस्ती में बाँट आया हूँ।
फिर एकाकी हो गया हूँ।
~ सूफ़ी बेनाम
पटल पर कुछ लोगों का मिलना
दोस्ती हो जाना
सब अनायास था, खुद बा खुद होता गया।
शुरू में उनके अल्फ़ाज़ों की कुलबुलाहट
उनके जस्बातों के दर्पण ....
लगने लगा की सबमें
मैं ही हूँ।
खुद को उनमें देखते-देखते
वाह-वाह करते एक लम्बा अरसा गुज़ारा हमने
कोई मुझे अपने छंदों से बाइस साल का महसूस करवाता
कोई ग्रीष्ममयी जीवन-व्यथा की प्यास मुस्कुराकर बुझाता।
फिर क्या था
ग़ज़ल का दौर चला
छंदों को बहर में बाँधा
और हर ख्याल को मन कानन के अँधेरे में भींच कर कलम किया।
लिखने की हवस बढ़ती रही
मेरे भीतर के इंसान को ढक कर
शायद मैं भी कवि सा हो गया
शायद कहीं कागज़ पे खो गया।
पर आज जगा हूँ
तो खुद को समेटना मुमकिन नहीं है
कुछ हूँ साथ अपने
कुछ दोस्ती में बाँट आया हूँ।
फिर एकाकी हो गया हूँ।
~ सूफ़ी बेनाम
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.