डॉ शैलेंद्र उपाध्याय का एक शेर है :
लाख दुश्वारी सही, हर साँस में इक दर्द है
जी रहे हैं लोग फिर भी जिंदगी ये शान से
वज़्न - 2122 2122 2122 212
अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
काफ़िया - आन
रदीफ़ - से
इसमें गिरह दे कर ग़ज़ल में उतरने की एक कोशिश :
गिरह :
टूटता हर मोड़ पे है देख हसरत का फितूर
जी रहे हैं लोग फिर भी जिंदगी ये शान से
मतला :
आज उम्मीदें जगीं हैं हर किसी अनजान से
सांस के पिंजर फंसे हर आशना एहसान से
अश्क़ भीगी रात का चहरा छुपा ले जायेंगे
रश्क़ क्यों इतना करें इक बेज़ुबाँ अरमान से
दिल जले फिर से मिलेंगे उम्र के उस मोड़ पर
इश्क़ को मज़हब बताने हुस्न की पहचान से
कोई ज़िन्दा तो बटोरे स्वपन के आशार को
टूटते हर रोज़ हैं ये हर किसी इंसान से
फलसफा मिलता नहीं अब साथ देने के लिये
सैकड़ों बेनाम मजलिस याद के फरमान से
~ सूफ़ी बेनाम
लाख दुश्वारी सही, हर साँस में इक दर्द है
जी रहे हैं लोग फिर भी जिंदगी ये शान से
वज़्न - 2122 2122 2122 212
अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
काफ़िया - आन
रदीफ़ - से
इसमें गिरह दे कर ग़ज़ल में उतरने की एक कोशिश :
गिरह :
टूटता हर मोड़ पे है देख हसरत का फितूर
जी रहे हैं लोग फिर भी जिंदगी ये शान से
मतला :
आज उम्मीदें जगीं हैं हर किसी अनजान से
सांस के पिंजर फंसे हर आशना एहसान से
अश्क़ भीगी रात का चहरा छुपा ले जायेंगे
रश्क़ क्यों इतना करें इक बेज़ुबाँ अरमान से
दिल जले फिर से मिलेंगे उम्र के उस मोड़ पर
इश्क़ को मज़हब बताने हुस्न की पहचान से
कोई ज़िन्दा तो बटोरे स्वपन के आशार को
टूटते हर रोज़ हैं ये हर किसी इंसान से
फलसफा मिलता नहीं अब साथ देने के लिये
सैकड़ों बेनाम मजलिस याद के फरमान से
~ सूफ़ी बेनाम