मिल गयीं जो सांसें गिरेबां के किनारे
देखनी है दुनिया इन्हीं सांसों के सहारे
कपड़े नहीं हैं ढकते बदन के भोलेपन को
रहना तुम बटन से इस काज के किनारे
महीनों में थे लिपटे सालों के ये नगीने
तुम लम्हों को बिताना थोड़ा सा संभलके
आज़ाद है इंसा एक मौज की ललक सा
रिश्तों में जी गये कुछ ले कर के दिलासे
गहराईयों में बेचैन किसकी रहा मैं इतना
एक झील सा नशेमन चारों तरफ किनारे
दिल से आज़ाद नहीं था कभी कोई परिंदा
बस आरज़ू को उड़ता गुत्थी है आसमां रे
गर प्यास सी गुज़रे बेनाम की मोहब्बत
सुफ़ियत समझना किसी शेर के सहारे।
~ सूफी बेनाम
देखनी है दुनिया इन्हीं सांसों के सहारे
कपड़े नहीं हैं ढकते बदन के भोलेपन को
रहना तुम बटन से इस काज के किनारे
महीनों में थे लिपटे सालों के ये नगीने
तुम लम्हों को बिताना थोड़ा सा संभलके
आज़ाद है इंसा एक मौज की ललक सा
रिश्तों में जी गये कुछ ले कर के दिलासे
गहराईयों में बेचैन किसकी रहा मैं इतना
एक झील सा नशेमन चारों तरफ किनारे
दिल से आज़ाद नहीं था कभी कोई परिंदा
बस आरज़ू को उड़ता गुत्थी है आसमां रे
गर प्यास सी गुज़रे बेनाम की मोहब्बत
सुफ़ियत समझना किसी शेर के सहारे।
~ सूफी बेनाम
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