Saturday, January 16, 2016

एक झील सा नशेमन चारों तरफ किनारे

मिल गयीं जो  सांसें गिरेबां के किनारे
देखनी है दुनिया इन्हीं सांसों के सहारे

कपड़े नहीं हैं ढकते बदन के भोलेपन को
रहना तुम बटन से इस काज के किनारे

महीनों में थे लिपटे सालों के ये नगीने
तुम लम्हों को बिताना थोड़ा सा संभलके

आज़ाद है इंसा एक मौज की ललक सा
रिश्तों में जी गये कुछ ले कर के दिलासे

गहराईयों में बेचैन किसकी रहा मैं इतना
एक झील सा नशेमन चारों तरफ किनारे

दिल से आज़ाद नहीं था कभी कोई परिंदा
बस आरज़ू को उड़ता गुत्थी है आसमां रे

गर प्यास सी गुज़रे बेनाम की मोहब्बत
सुफ़ियत समझना किसी शेर के सहारे।

~ सूफी बेनाम




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