शरारत हम ही से कर गया कोई
लपक के ख्वाब जगा गया कोई
फिर यूं तो करवट पढ़े अंधेरों को
शायद कम्बल थमा गया कोई
सुलगने लगे होंगे सिरहाने देखो
आतिशे हसरत दिखा गया कोई
तिराहों पे भी सफ़ी रह गये तुम
नज़र को अक्स उलझा गया कोई
कब से गुम है अंदाज़ तारिख का
रातों को दिन फिर जला गया कोई
क्यों था खेला उसकी फ़ितरत से
बस एक आह से जला गया कोई
ग़ज़ब छाँव धूप में आँचल उसका
मीठी बातों का गाँव बसा गया कोई
अब शिफ़ा है नाम-ओ-शहर उसका
क़दमों को गलियाँ दिखा गया कोई
अजब है सूफियत का इल्म होना
जब बेनाम को पहचान गया कोई
~ सूफी बेनाम
सफ़ी - clear/ serene

No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.