शायद ख्याल से जलकर गये
मिसरों से अंदाज़ सुलगकर गये
हाय जो फ़िरते थे आवारा राह में
किस तरह काँटों से फटकर गये
जो चपके रह गये थे जिल्द से
वो हवाओं में सर पटककर गये
हर हर्फ़ जब था ज़रूरी मश्क़ का
एक किता में समझौता कर गये
वो ख्याला ग़ज़ल आज़ाद रही
शम्स को मेरी हिरासत कर गये
~ सूफी बेनाम
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