Friday, February 21, 2014

मुश्त-ए-खाक़

एक याकूत सा गुलाम है
मेरा मुश्त-ए-खाक़ इस जहां के
बेलकीर, बेगाने से सफ़र में
शौक-ए-रज़िया को ढूँढता है।

है मोहब्बत जज़्ब सिर्फ
हुकूमत वालों का और
इश्क़ है किया जाता ग़ुलामी में
बेगार बनकर।

न रही सल्तनतें
न रज़िया न शौक-ए-शमशीर
ये बदन में दौड़ता लहू
अब किस काम का है ?

हर रोज़ एक नये दर्द की
ओट लेकर खड़े हो जाते हैं
ए बेनज़ीर कुछ देर और जीना को
बहाना तो दे।

~ सूफी बेनाम





याकूत - Jamal ud din Yakut ( Slave of Razia Sultan) ; मुश्त-ए-खाक़ - Handful of dust/ human being ; बेनज़ीर - incomparable ; शौक-ए-रज़िया  - a woman who can enslave a man.

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