Tuesday, February 18, 2014

ऐसा देखा गया है

ऐसा देखा गया है
जब भी कोई अंजाना सा
नया मौसम, नया दर्द
उम्मीद में जगता है
तो फँस जाता है
रूंध के, बादलों में।

अराइशों के,
इस पतझड़ में,
किसी फितरती चाह
या उम्मीद को,
जब दो आँखें मिलती हैं
तो शबनम की कुछ बूँदें
मोती बनकर खिलती हैं
कुछ  सूख  जाती हैं,
या ढलक जाती हैं - टीस में।

कुछ जो संजो के रक्खी हैं,
सदफ़ - ए - तवक्क़ो में
मोती बनकर शायद कभी
किसीके आभूषण को
कबूल हों  ।

~ सूफी बेनाम




अराइशों - images ; सदफ़ - shell  ;  तवक्क़ो - expectation,hope

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