एक साड़ी में लपेट लिया
पूरी शाम को तुमने
हम सब बारी बारी से आते थे
तुम्हारे पास कभी छूने- चिपकने
कभी तुम्हारे स्पर्श को।
उधड़न जो तुम्हारे
ब्लाउज और बदन के बीच
से मिठास छलकाती है
जज़्बात जगती है और बेमर्म
मेरी नज़रों को चिकोटती रहती है।
नीचे से झलकते तुम्हारे
कागज़ी पाओं में लिपटी
नाज़ुक सी बिछिया, पायल
गले में कंचन, कुण्डल
और सुर्ख रंग का श्रृंगार।
ना जाने अब और क्या चाहती हो मुझसे ?
~ सूफी बेनाम
पूरी शाम को तुमने
हम सब बारी बारी से आते थे
तुम्हारे पास कभी छूने- चिपकने
कभी तुम्हारे स्पर्श को।
उधड़न जो तुम्हारे
ब्लाउज और बदन के बीच
से मिठास छलकाती है
जज़्बात जगती है और बेमर्म
मेरी नज़रों को चिकोटती रहती है।
नीचे से झलकते तुम्हारे
कागज़ी पाओं में लिपटी
नाज़ुक सी बिछिया, पायल
गले में कंचन, कुण्डल
और सुर्ख रंग का श्रृंगार।
ना जाने अब और क्या चाहती हो मुझसे ?
~ सूफी बेनाम
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