मेरी रिहम को
इतने करीब से देखा न कर ए दिलबर
ये ज़ख्म शौक के इस जानिब पाल के रक्खे हैं
कोई रिज़ालत नहीं है यहाँ
ये ज़िन्दगी को अंजाम की दुआ देते हैं।
उसे यूं हयात का मर्ज़ हुआ
जो रिस्ता रहा लबो-लहजा बनकर
वफ़ा तो फुर्सत में नब्ज़-ए-सबक बनी
हमने भी उसे प्यास पे बुझने ना दिया
उल्फत से जलायेंगे उसे पानी बनकर।
~ सूफी बेनाम
रिहम - womb; रिज़ालत - low-deeds; जानिब - side; हयात - life; लबो लहजा - articulation, way of speaking.
इतने करीब से देखा न कर ए दिलबर
ये ज़ख्म शौक के इस जानिब पाल के रक्खे हैं
कोई रिज़ालत नहीं है यहाँ
ये ज़िन्दगी को अंजाम की दुआ देते हैं।
उसे यूं हयात का मर्ज़ हुआ
जो रिस्ता रहा लबो-लहजा बनकर
वफ़ा तो फुर्सत में नब्ज़-ए-सबक बनी
हमने भी उसे प्यास पे बुझने ना दिया
उल्फत से जलायेंगे उसे पानी बनकर।
~ सूफी बेनाम
रिहम - womb; रिज़ालत - low-deeds; जानिब - side; हयात - life; लबो लहजा - articulation, way of speaking.
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