मैंने अपने दो कच्चे मिसरों को
तुम्हारी नज़्म के साथ
डायरी के पन्नों में लपेटकर
साथ सुला दिया है।
बुक - मार्क भी नहीं लगाया है।
सिमटे सहमे वो कच्चे मिसरे
तुम्हारे अंदाज़ खोज ही लेंगे
एक डिक्शनरी भी साथ रख दी है
गर बात आगे बड़ी तो खुद बा खुद समझ लेंगे
उम्मीद है रात महफ़िल
तो सजी ही होगी
और हमारे सवालों को
एक नज़्म ने छुपाया होगा।
~ सूफी बेनाम
तुम्हारी नज़्म के साथ
डायरी के पन्नों में लपेटकर
साथ सुला दिया है।
बुक - मार्क भी नहीं लगाया है।
सिमटे सहमे वो कच्चे मिसरे
तुम्हारे अंदाज़ खोज ही लेंगे
एक डिक्शनरी भी साथ रख दी है
गर बात आगे बड़ी तो खुद बा खुद समझ लेंगे
उम्मीद है रात महफ़िल
तो सजी ही होगी
और हमारे सवालों को
एक नज़्म ने छुपाया होगा।
~ सूफी बेनाम
वाह क्या बात है...
ReplyDeleteThis is ill-equipped but has a flow.
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