Monday, October 7, 2013
सौदा
लम्हों की भारी किश्तों पर
कुछ और ज़र्रे बहके होंगे
कुछ कीमतें टूटी होंगी रिश्तों की
सोचता हूँ आज फिर बाज़ार चलें।
सुर्ख-फरेब की झिलमिलाती दुकानें
के महंगे-सस्ते सौदों पर
छोटी-बड़ी कीमतें देकर
सब बिकने को तो आये हैं।
~ सूफी बेनाम
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