कोई एलन न कर, ऐ लखते जिगर
यहाँ इकरार के कुछ, लम्हे बाकि हैं।
नहीं पता कि कब बिछड गये थे हम
बड़ते गये किसी ज़िद्द में या रस्ते बदल गये।
चलते जाना है कि कुछ इंतज़ार करें ?
पनाह राहों में मिलती है बसेरॊन के बीच।
किस होड़ में हो तुम, खबर नहीं हमें,
मुनासिब है परेशां हो जज़्बे मक़नातीसी से ।
चाह नहीं किसी से मिलूँ इस कबुतरखाने में
यहाँ उड़ने को हर वक़्त बेताब परिंदे हैं।
बात जिरह तक होती तो यक़ीनन जीत लेते हम
अब ऐतबार किसी और दुनियां में जीतेंगे।
बिखरने का गम नहीं, ए महोब्बत ये समझो
यहाँ पर सिर्फ घात पे विश्वास है भरोसा करने को।
हर उम्मीद पे रुकते थे कुछ देर तक, पहले हम
अब मूँद आँखों में ज़िन्दगी बेहतर सुलझती है।
कही रुकना पहुंचना तो इतना बतला देना
जाने किस-किस खबर को अब भी सांसें तरसती हैं।
है तड़प यूं नहीं कि खंजर दूर तक घोंपा
मालूम तो हो मेरी सांसो से किस-किस को बेचैनी है।
थोड़ा परेशां रहेंगे कुछ देर यहाँ चाहने वाले
चुनिन्दा यादों में जीना मुझे मंज़ूर ज्यादा है।
बात ख़त्म ना हो पायेगी गर लिखता ही जाऊँगा
ग़ज़ब ये हादसा है इसीमे समेट दे मुझको।
~ सूफी बेनाम
जज़्बे मक़नातीसी - magnetic attraction.