Thursday, May 4, 2017

मैं मात्राओं का आदमी हूँ

मैं
गोल, घुमावदार,
छल्ले-वाली,
सुडौल-स्वरांकनों का
मात्राओं का आदमी हूँ।

मेरी की और कि में
फ़र्क होता है
ऊ और आ के संयोग से
मेरे शब्द बनते हैं।
आधे अधूरे-अपंग वर्ण भी
कभी मिलकर कभी हलन्त के योग से
संधियाँ करते हैं।
सांसर्गिक मतलबों की भाषा
को शक़्ल देते हैं।
हर शब्द अपनी चुने हुए
स्वरों से
खुद से अलग महसूस
करता है।
कंठ, दंत, तालु, मूर्धा, होष्ठ के
स्पर्श से उदित चेतन - शब्द-व्यंजन
स्वरों से उछाल लेते हैं
उर्दू-ई दोस्ती के नुख़्ते
जो सफ़र-ज़हर का फ़र्क
मोहब्बत में ही  निभाते रहते,
पर रात चाँद की बातें करते वक़्त
खींचा-तानी में
मेरे कुर्ते पे चिपकी तुम्हारी बिन्दियां,
अनुनासिक्य और अनुस्वार का विवाद
ज़िन्दा कर आयीं हैं।
पर मैं मात्राओं का आदमी हूँ ,
देसी हूँ , हिन्दी हूँ।

~ सूफ़ी बेनाम


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