RIP .... प्रताप सुन्दर।
हमारे रोज़ में
कुछ न कुछ
बाकी रह जाता है
हमेशा।
कई लम्हा, बातें, ख्याल
कई शायद हैं यहाँ
जो दब जाते हैं
ज़रूरतो से।
वो जो ज़िंदा रखते हैं
हमारी यादों को
हमेशा .......
गुज़र चुके होते हैं।
एक दोस्त की
खबर नहीं मिली थी
कुछ दिनों से
सुबह पता चला
वो महीनों पहले गुज़र गया।
~ सूफी बेनाम
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