इंसानी बेकसी, तजरीबों की रच-बुन
आग में डूब के निकलना है, इस जहाँ से।
वो हुस्न बेशुमार ही क्या जो
उम्मीद में ख़लल न पैदा कर दे।
वो इश्क़ बेमिसाल ही क्यों जो
दिल जला कर छलनी न कर दे।
वो दोस्ती बेइन्तहां ही कैसी जो
सबसे प्यारी चीज़ न छीने ले।
इंसान को बेनियाज़ बनाती है दिल्लगी
दर्द-ए-चाहत से गुज़रा - अकेला तो हो।
~ सूफी बेनाम
बेनियाज़ - carefree.
आग में डूब के निकलना है, इस जहाँ से।
वो हुस्न बेशुमार ही क्या जो
उम्मीद में ख़लल न पैदा कर दे।
वो इश्क़ बेमिसाल ही क्यों जो
दिल जला कर छलनी न कर दे।
वो दोस्ती बेइन्तहां ही कैसी जो
सबसे प्यारी चीज़ न छीने ले।
इंसान को बेनियाज़ बनाती है दिल्लगी
दर्द-ए-चाहत से गुज़रा - अकेला तो हो।
~ सूफी बेनाम
बेनियाज़ - carefree.
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