एकटक निगाहों में हर दिन से
उम्मीद लगा बैठे हैं जैसे
सड़क किनारे नंगे पाॉव दौड़ते बच्चे
इस उम्मीद में हों
कि कोई आवाज़ देगा नाम से
पर खनक सिक्कों की
उस मैली सी चादर पर
फिर उन्हें बिखरी बना जाती है
बेनाम कर जाती है।
~ सूफी बेनाम
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