Monday, September 18, 2017

अब तो हैं दिल को आ गईं आँखें

२१२२-१२१२-२२

रौशन-ए-दिल दिखा गईं आँखें
मिलते ही शर्म खा गईं आँखें

कुछ झिझक सी गयी थी पल भर को
ताकने सौ दफ़ा गईं आँखें

इश्क तो दूरियों पे ज़िन्दा है
फासले सच, मिटा गईं आँखें

कैस का दिल्लगी में कोरापन
तज़रबा कुछ करा गईं आँखें

वस्ल तो जिस्म की ज़रूरत है
बाकी सब तो निभा गईं आँखें

उनको हसरत से हमने देखा तो
खामखां कसमसा गईं आँखें

हाय उनकी नज़र का बुतखाना
यार दिल को थी खा गईं आँखें

इश्क़, हसरत, खुमार, अंधापन
राज़-ए-दिल को बता गईं आँखें

प्यास दो चुस्कियों में डूबीं जब
धड़कने को बड़ा गईं आँखें

दोस्त रूमाल बन के आ जाओ
अब तो हैं दिल को आ गईं आँखें

पास सीढ़ी के सांप दो-दो हैं
दाँव पांसे लगा गईं आँखें

ख़ुशनुमा काजल-ए-सफर में हम
जब से है फ़न दिखा गईं आँखें

जेब खली है दिल भी सूना है
शौक में सब बहा गईं आँखें

बेज़ुबानी सराब चहरों की
काल दिल को लगा गईं आँखें

~ सूफ़ी बेनाम

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