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सितमगर के दिल से, वो फ़न ले के लौटा
रूदाद-ए-दिलों की, चुभन ले के लौटा
वहां तंग गलियों, बसे लोग सौ-सौ
अजीबो-गरीबां, कथन ले के लौटा
अथक है पिपासा, बहे मन की सरिता
महकती ग़ज़ल में, छुअन ले के लौटा
महकते-बहकते मिलो, होश में अब
मैं मीलों सफर की, थकन ले के लौटा
समुन्दर किनारे बसा इक शहर है
नया उस शहर से चलन ले के लौटा
हूँ सूखा हुआ सा, मैं बंजर सा बदल
मगर सूफ़ियाना अगन ले के लौटा
~ सूफ़ी बेनाम
सितमगर के दिल से, वो फ़न ले के लौटा
रूदाद-ए-दिलों की, चुभन ले के लौटा
वहां तंग गलियों, बसे लोग सौ-सौ
अजीबो-गरीबां, कथन ले के लौटा
अथक है पिपासा, बहे मन की सरिता
महकती ग़ज़ल में, छुअन ले के लौटा
महकते-बहकते मिलो, होश में अब
मैं मीलों सफर की, थकन ले के लौटा
समुन्दर किनारे बसा इक शहर है
नया उस शहर से चलन ले के लौटा
हूँ सूखा हुआ सा, मैं बंजर सा बदल
मगर सूफ़ियाना अगन ले के लौटा
~ सूफ़ी बेनाम
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