समझदारी, निशानी कच्चे पन की है, हमेशा ही
तज़ुर्बेकार, रखते हौसले, नासमझियों के हैं
गुज़रते सालों के मज़मों में, यादें पल रहीं है, पर
बचे सालों से अकसर हम, उमर को आंक पाते हैं
शराफत ने सिखाया है, अभी तक जीना, डर-डर के
मसाफ़त की कशिश से, सच का मज़हब भांप लेते हैं
बहुत नादान हो, जो चाहते थे, ठीक हो सब कुछ
चलो, अब ठीक क्या है, ये तो तुमसे पूछ सकते हैं
वो पागलपन, कभी जिसके लिए तुम पास आती थी
उसी को बेवजह, क्यों आज तक हम, पाल रक्खे हैं
हलफ़नामे, कभी छपते नहीं हैं, इश्क़ में मरकर
न जाने क्यों, इसे मज़हब का, फिर सब नाम देते है
~ सूफ़ी बेनाम
मसाफ़त - journey / distance ; हलफ़नामे - affidavit
तज़ुर्बेकार, रखते हौसले, नासमझियों के हैं
गुज़रते सालों के मज़मों में, यादें पल रहीं है, पर
बचे सालों से अकसर हम, उमर को आंक पाते हैं
शराफत ने सिखाया है, अभी तक जीना, डर-डर के
मसाफ़त की कशिश से, सच का मज़हब भांप लेते हैं
बहुत नादान हो, जो चाहते थे, ठीक हो सब कुछ
चलो, अब ठीक क्या है, ये तो तुमसे पूछ सकते हैं
वो पागलपन, कभी जिसके लिए तुम पास आती थी
उसी को बेवजह, क्यों आज तक हम, पाल रक्खे हैं
हलफ़नामे, कभी छपते नहीं हैं, इश्क़ में मरकर
न जाने क्यों, इसे मज़हब का, फिर सब नाम देते है
~ सूफ़ी बेनाम
मसाफ़त - journey / distance ; हलफ़नामे - affidavit
Lovely expression...This one is my most fav!
ReplyDeleteबचे सालों से अकसर हम उमर को आंक पाते हैं!