Tuesday, August 22, 2017

तुम्हारी कवितायेँ

आज कल तुम्हारी कवितायेँ
भीतर तक हिलाने लगी हैं
ऐसा लगता है जैसे कोई है
शायद मेरे ही भीतर
जिसके लिए ये शब्द तुम से
उभर कर, लिख जाते हैं
पर
शायद मैं उसको
जानता नहीं
ऐसा लगता है कि जब तुम
ढूंढ लोगी उसको
तब मैं भी उससे मिल सकूँगा।

~ सूफ़ी बेनाम



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