क्या अनभिज्ञ रहे ख़्वाबों से
या सोये नहीं थे रात को
क्या विवश हुए कुछ खो देने से
या बेसुध खुद में बिसरने को
क्या आवाज़ जागी थी सुबह से
या राह से अल्फ़ाज़ ढूँढ़ने को
क्या कोई शरारत बिस्तरों से
सुबह आयी काँधे ठहरने को
क्या नासमझी बढ़ीं दिल्लगी से
या रहा द्वेष विद्रोही-विवेक को
अतुल्य है मर्म हर पल सौम्य
शिकायतों से न खोना इस को।
~ सूफी बेनाम
या सोये नहीं थे रात को
क्या विवश हुए कुछ खो देने से
या बेसुध खुद में बिसरने को
क्या आवाज़ जागी थी सुबह से
या राह से अल्फ़ाज़ ढूँढ़ने को
क्या कोई शरारत बिस्तरों से
सुबह आयी काँधे ठहरने को
क्या नासमझी बढ़ीं दिल्लगी से
या रहा द्वेष विद्रोही-विवेक को
अतुल्य है मर्म हर पल सौम्य
शिकायतों से न खोना इस को।
~ सूफी बेनाम
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