ज़िन्दगी ये सफ़र अब नया तो नहीं
हर क़दम जो साथ दे, खुदा तो नहीं।
ये मुड़ के रुक गया कि तेरा नाम सफ़र में
अंदाज़-ए-दर्द ही था कोई शिफ़ा तो नहीं।
लोग छू देते हैं अब भी देखने अक्सर
दो रंग का अभी तक मैं इंसा तो नहीं।
लिखना ज़रूरी था जिये जस्ब सफर में
पर तुझतक न पहुंची वो सदा तो नहीं।
यहाँ फरिश्तों में तेरा ज़िक्र रहता है
मेरा इंसा रह जाना कोई अता तो नहीं।
फ़िक्र तेरे ख़ुल्द की अब करता मैं नहीं
तेरे साथ का कोई रंग अदा तो नहीं।
अनजान गुज़र गयी जो बेनाम शहर में
वो शाम सूफ़ियानी कोई खता तो नहीं।
~ सूफी बेनाम
हर क़दम जो साथ दे, खुदा तो नहीं।
ये मुड़ के रुक गया कि तेरा नाम सफ़र में
अंदाज़-ए-दर्द ही था कोई शिफ़ा तो नहीं।
लोग छू देते हैं अब भी देखने अक्सर
दो रंग का अभी तक मैं इंसा तो नहीं।
लिखना ज़रूरी था जिये जस्ब सफर में
पर तुझतक न पहुंची वो सदा तो नहीं।
यहाँ फरिश्तों में तेरा ज़िक्र रहता है
मेरा इंसा रह जाना कोई अता तो नहीं।
फ़िक्र तेरे ख़ुल्द की अब करता मैं नहीं
तेरे साथ का कोई रंग अदा तो नहीं।
अनजान गुज़र गयी जो बेनाम शहर में
वो शाम सूफ़ियानी कोई खता तो नहीं।
~ सूफी बेनाम
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