Sunday, February 22, 2015

RIP .... प्रताप सुन्दर।

हमारे रोज़ में
कुछ न कुछ
बाकी रह जाता है
हमेशा।
कई लम्हा, बातें, ख्याल
कई शायद हैं यहाँ
जो दब जाते हैं
ज़रूरतो से।
वो जो ज़िंदा रखते  हैं
हमारी यादों को
हमेशा .......
गुज़र चुके होते हैं।
एक दोस्त की
खबर नहीं मिली थी
कुछ दिनों से
सुबह पता चला
वो महीनों पहले  गुज़र गया।

~ सूफी बेनाम


Wednesday, February 18, 2015

खनक


एकटक निगाहों में हर दिन से
उम्मीद लगा बैठे हैं जैसे
सड़क किनारे नंगे पाॉव दौड़ते बच्चे
इस उम्मीद में हों
कि कोई आवाज़ देगा नाम से
पर खनक सिक्कों की
उस मैली सी चादर पर
फिर उन्हें बिखरी बना जाती है
बेनाम कर जाती है।

~ सूफी बेनाम


रिश्ता -ए-हकीक़त

कोतवाली में कोतवाल
चोर और गुनाह के किस्से।
सरहदों पर शहीदों के निशां
वफ़ा और शहादत के चर्चे।
बाज़ारों में सजी धजी दुकानें
मोहब्बत-तबाही के अफ़साने।
हर बार बदलके
मिलता है इंसान मुझसे।

~ सूफी बेनाम


कुछ दूर चले जाओ, ठहरो ना इस जगह...

कुछ दूर चले जाओ,
ठहरो ना इस जगह...

ज़रा बदल जाओ
ठहरो ना इस जगह
वरना कोई आएगा
औ तुमको बदल देगा।
पलट के ना देखो उसे
बार-बार, जो गुज़र गया
वो लम्हा-ए-इंसा है
मौसम की तरह ना लौटेगा।


ज़रा बदल जाओ
ठहरो ना इस तरह
वरना कोई आयेगा
औ तुम को कुचल देगा।
मेरे जूनून ने कई बार
संभाला मुझको
मेरे दोस्त, वो खैर-ख्वाह मेरे
बेदार - समझदार निकले।


ज़रा बदल जाओ
ठहरो ना इस जगह
वरना कोई आएगा
औ तुमको बदल देगा।

~ सूफी बेनाम




Wednesday, February 11, 2015

बेनियाज़

इंसानी बेकसी, तजरीबों की रच-बुन
आग में डूब के निकलना है, इस जहाँ से।

वो हुस्न बेशुमार ही क्या जो
उम्मीद में ख़लल न पैदा कर दे।

वो इश्क़ बेमिसाल ही क्यों जो
दिल जला कर छलनी न कर दे।

वो दोस्ती बेइन्तहां ही कैसी जो
सबसे प्यारी चीज़ न छीने ले।

इंसान को बेनियाज़ बनाती है दिल्लगी
दर्द-ए-चाहत से गुज़रा - अकेला तो हो।

~ सूफी बेनाम

बेनियाज़ - carefree.