Friday, November 17, 2017

आओ ले जाओ मुझसे मैं

जब भी तुमसे मिल के आता हूँ
तो कविता में एक नयापन
यूं आ जाता है कि,
बहकर तुममें जब
मैं पूरा हो जाता हूँ
खाली-खाली तब
जगकर मुझमें, भीतर,
उसको भरने
एक अज्ञात-घटक
उभर आता है
उसको ही मैं लिख देता हूँ,
जी लेता हूँ,
समझो कविता कह लेता हूँ।

पिछले कुछ सालों में कविता में
बस मैं ही मैं हूँ।
अनजानापन ढूंढ रहा हूँ
आओ ले जाओ मुझसे मैं
मेरी कविता हलकी कर दो
मुझको मैं से खाली कर दो।


~ सूफ़ी बेनाम











No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.