Saturday, February 4, 2017

मरना आसान नहीं कसर के दागों को लिए

आदरणीय देवेन्द्र माँझी जी के मिसरे में गिरह की कोशिश :

मरना आसान नहीं कसर के दागों को लिए
लोग क्यों आए हैं मुट्ठी में चिराग़ों को लिए
मतला:

बह गये प्यार में हमसाज़ तरानों को लिए
आप साहिल रहे रेग की मिसालों को लिए

हुस्न की आंच को नज़दीक न पायें फिर भी
दिल जले आज फ़क़त आप के ख़्वाबों को लिए

रिंद परवाज़ सफर, खैर बने आस्मा तक
अर्श की गर्द में हम-आप सवालों को लिए

दर्द ने तोड़ हमें चश्म सा बहकर देखा
ज़िस्म ज़र दार हुआ आप की यादों को लिए

हुस्न जस्बात हया और नफ़ी आँखें भी
मिल रही आज तलक चाह किताबों को लिए

सिलसिलेवार हमें छूती हैं उनकी सांसें
एक नफ़ी चाह भरी ताब के ज़ख़्मो को लिए

~ सूफ़ी बेनाम

वज़्न - 2122 1122 1122 22/112
अर्कान - फाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फैलुन /फइलुन
बह्र - बह्रे रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ो मक़्तूअ
काफ़िया - ओं (स्वर)
रदीफ़ - को लिए



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