Sunday, February 26, 2017

आप जब पास हों तब कौन यहाँ होता है

वज़्न - 2122 1122 1122 22/112
अर्कान - फाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फैलुन /फइलुन
बह्र - बह्रे रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ो मक़्तूअ

काफ़िया - आं (स्वर)
रदीफ़ - होता है

गिरह :
संग के फर्श पे कब कोई निशां होता है
प्यार गर हो न तो घर सिर्फ़ मकां होता है
मतला:
अर्श के बोसों का फिर दर्द अयां होता है
जान हर राह गली उसका मकां होता है

इक मुलाक़ात को भूला न शहर था उसका
आज तक नक्श में हर रास्ता वहां होता है

फिर मरा इश्क़ में कब कोई ग़मों का मारा
दर्द पर सीने में हर रोज़ जवां होता है

यूं तो हर रोज़ मिले दिल से लगाने वाले
आप जब पास हों तब कौन यहाँ होता है

कुछ जलाया भी करो हमको बुझाने वालों
उम्र अफ़रोज़ है औ, रोज़ समां होता है

हम थे बेताब-परेशान मुलाक़ातों को
आप के सीने में दिल रोज़ कहां होता है

शौक मजबूर बना कर के गये हैं हमको
वरना बिन आग के इस दिल में धुआं होता है

~ सूफ़ी बेनाम


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