Thursday, September 17, 2015

बदल-ओ-अस्ल हो आवारा जैसे

ना-मुक़ाम कर गये बंजारा जैसे
बदल-ओ-अस्ल हो आवारा जैसे

हकीकत-ए-अब्दल हो रही रवाँ  
शिफ़ा-ए-याद हो सहारा जैसे

अथक सांसें सुना रही दास्तां
रिश्ता-ए-ज़रुरत हो गंवारा जैसे

खुश्क ओंठों का बढ़ रहा रूमान
आब-ए-चश्म ही हो किनारा जैसे

लम्हा-ए-उलझन सांसें गुमां  
उल्फ़त-ए-महक अंगारा जैसे

जिस्म-बेकाबू दीद-ए-याद जवाँ  
भँवर-ए-अख़्तर कहीं शरारा जैसे

निगाह-ए-तलाश  आफ़त  मेहरबाँ
ज़िक्र-ए-बेनाम, बेज़ुबाँ नज़ारा कैसे
~ सूफी बेनाम




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