Sunday, April 27, 2014

शरारती नज़्म

वो  कहती ही नहीं थी
जो मैं उससे कई बार
सुन्ना चाहता था
उसकी पहचान
दर्ज़ कराना चाहता था।

लम्बी मुस्कराहटें
खर्च हुई हर बार
- कुछ ज़ाहिर ना हुआ
पर ये जज़बात उसको
बेचैन ज़रूर करते रहे

अधलिखा सा आज मैंने उसको
फिर फिर गुनगुनाया
खोखला- अधूरा  कर गयी थी वो।
इसलिए आज उस नज़्म से
मैंने दोस्ती तोड़ दी।

~ सूफी बेनाम

(This is Anjora's photograph. We are great friends. The photo is representative of a childlike innocence of poetry that I cannot understand)

No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.