वो कहती ही नहीं थी
जो मैं उससे कई बार
सुन्ना चाहता था
उसकी पहचान
दर्ज़ कराना चाहता था।
लम्बी मुस्कराहटें
खर्च हुई हर बार
- कुछ ज़ाहिर ना हुआ
पर ये जज़बात उसको
बेचैन ज़रूर करते रहे
अधलिखा सा आज मैंने उसको
फिर फिर गुनगुनाया
खोखला- अधूरा कर गयी थी वो।
इसलिए आज उस नज़्म से
मैंने दोस्ती तोड़ दी।
~ सूफी बेनाम
जो मैं उससे कई बार
सुन्ना चाहता था
उसकी पहचान
दर्ज़ कराना चाहता था।
लम्बी मुस्कराहटें
खर्च हुई हर बार
- कुछ ज़ाहिर ना हुआ
पर ये जज़बात उसको
बेचैन ज़रूर करते रहे
अधलिखा सा आज मैंने उसको
फिर फिर गुनगुनाया
खोखला- अधूरा कर गयी थी वो।
इसलिए आज उस नज़्म से
मैंने दोस्ती तोड़ दी।
~ सूफी बेनाम
(This is Anjora's photograph. We are great friends. The photo is representative of a childlike innocence of poetry that I cannot understand)
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.