मनुष्य
जीवन भर
अपनी अंतिम यात्रा के क्षणों का अभ्यास करता है
प्रतिदिन की थकावट,
सुख को खोने का भय
अवसाद, अधूरापन, थकावट, निद्रा, साँसें
सब मरणाभास हैं
मनुष्य
अंतिम पलों में
अभ्यास-पाठ का अंतिम प्रहार करता है
दोहराता है
जैसे जीवन के अंत में
मनुष्य असहाय महसूस करता है, तो यह जीवन भर का भाव है
जैसे उसको लगता है कि सब कुछ छूट रहा है
जैसे वो कभी-कभी पछताता है
डरता, घबराता है
या फिर डूबने लगता है विषाद में,
या, करता है जन्म-भूमि जयघोष, सिपाही सा
या, घुल जाता है नमक के डेले सा
कवि-कल्पना की भांति, दिलों में
या, भरता है हुंकार, योद्धा के जैसे
और साँस चलते हुए भी उसको लगता है
कि शायद ऐसा ही होगा अन्त, ऐसे ही आरम्भ होगा आगे का सफर
और अनुशासन बद्ध करता है प्रतिदिन नित-पल स्वयं को
वैसे ही पिता को अभ्यासित थे
समाधि के रास्ते
कंठस्थ थे
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