Saturday, June 27, 2015
क्यूँ हम लिखते थे
हालात-ए-दिल देखते थे दुनिया का,
और न जाने क्यूँ हम लिखते थे ?
किसके थे ये मरहले, ये कारवां ज़िन्दगी के
किसकी कहानी बेनाम हम लिखते थे।
आबिद तेरे आब-ए-ज़र में डूबते थे जानम,
तैरते हम थे फिर भी सनम लिखते थे।
तनहा, तुझको याद करते थे अलीम आजिज़,
पर शाम की मुरझाई शक्ल हम लिखते थे ?
झलक तेरी देखते थे खुशनुमा आसमां में हज़ारों,
कागज़ को रंग-ए-बाम से हम लिखते थे।
जली तसवीर थी जल गया था बदन
फिर भी तेरे नाम को हम लिखते थे?
ढकता है साज़-ओ-ज़िमल, आरज़ू का बदन
फिर क्यों इसका कफ़न हम लिखते थे।
हालात-ए-दिल-ए-मजबूर देखते थे दुनिया को ,
शायद जानम इसलिए हम लिखते थे।
~ सूफी बेनाम
आबिद - worshiper, lover ; आब-ए-ज़र - liquid gold ; अलीम - learned, wise ; आजिज़ - helpless, incapable ; रंग-ए-बाम - colourful terrace / balcony ; साज़-ओ-ज़िमल - musical (designed) cloth for complete body OR hijaab ;
और न जाने क्यूँ हम लिखते थे ?
किसके थे ये मरहले, ये कारवां ज़िन्दगी के
किसकी कहानी बेनाम हम लिखते थे।
आबिद तेरे आब-ए-ज़र में डूबते थे जानम,
तैरते हम थे फिर भी सनम लिखते थे।
तनहा, तुझको याद करते थे अलीम आजिज़,
पर शाम की मुरझाई शक्ल हम लिखते थे ?
झलक तेरी देखते थे खुशनुमा आसमां में हज़ारों,
कागज़ को रंग-ए-बाम से हम लिखते थे।
जली तसवीर थी जल गया था बदन
फिर भी तेरे नाम को हम लिखते थे?
ढकता है साज़-ओ-ज़िमल, आरज़ू का बदन
फिर क्यों इसका कफ़न हम लिखते थे।
हालात-ए-दिल-ए-मजबूर देखते थे दुनिया को ,
शायद जानम इसलिए हम लिखते थे।
~ सूफी बेनाम
आबिद - worshiper, lover ; आब-ए-ज़र - liquid gold ; अलीम - learned, wise ; आजिज़ - helpless, incapable ; रंग-ए-बाम - colourful terrace / balcony ; साज़-ओ-ज़िमल - musical (designed) cloth for complete body OR hijaab ;
Thursday, June 18, 2015
आतिश-ए-चीनार
शाम-ए-ग़ज़ल के वो चंद मिसरे,
बहे बेहतर थे तेरी कलम से।
आतिश-ए-चीनार मेरी रूह में ज़्यादा,
सुलगकर शोला हुए हैं खुदी से।
वो राहें, वो जंगल, वो बागान जहाँ से
गुज़रते थे बादल नरम गद्दियों से।
वो खुले आसमां के नामी फ़रिश्ते
तेरी ग़ज़ल की तश्बीह को तरसे।
कदम-ए-कलम, रुक-रुक थमे से ,
तेरे एक आदाब से सालों बिताते।
तलाश-ए-नज़र को तकमील कहाँ से,
बेनाम एक नज़र के तलबगार रहे थे।
शाम-ए-ग़ज़ल के वो चंद मिसरे,
घुले बेहतर थे तेरी कलम से।
~ सूफी बेनाम
तकमील - completion
बहे बेहतर थे तेरी कलम से।
आतिश-ए-चीनार मेरी रूह में ज़्यादा,
सुलगकर शोला हुए हैं खुदी से।
वो राहें, वो जंगल, वो बागान जहाँ से
गुज़रते थे बादल नरम गद्दियों से।
वो खुले आसमां के नामी फ़रिश्ते
तेरी ग़ज़ल की तश्बीह को तरसे।
कदम-ए-कलम, रुक-रुक थमे से ,
तेरे एक आदाब से सालों बिताते।
तलाश-ए-नज़र को तकमील कहाँ से,
बेनाम एक नज़र के तलबगार रहे थे।
शाम-ए-ग़ज़ल के वो चंद मिसरे,
घुले बेहतर थे तेरी कलम से।
~ सूफी बेनाम
तकमील - completion
Monday, June 15, 2015
बे-लगाम
खुद ही तो नहीं बे-लगाम कोई अदना,
करीबी यहाँ तक पहुंचा गया है कोई।
खलिश-ए-तासीर बुझी मंद रगों का
दिलासा-ए-दावार मिटा गया है कोई।
खुद ही है कातिब, राह-ए-ख़ुलूस का,
हो अंजाम कुछ भी, बेपरवाह है कोई।
खुद ही तो नहीं बे-लगाम कोई अदना,
बेनाम यहाँ तक पहुंचा गया है कोई।
~ सूफी बेनाम
दावार - justice ; कातिब - scribe; अदना - insignificant ; ख़ुलूस - purity; बेनाम - nameless and worthless.
करीबी यहाँ तक पहुंचा गया है कोई।
खलिश-ए-तासीर बुझी मंद रगों का
दिलासा-ए-दावार मिटा गया है कोई।
खुद ही है कातिब, राह-ए-ख़ुलूस का,
हो अंजाम कुछ भी, बेपरवाह है कोई।
खुद ही तो नहीं बे-लगाम कोई अदना,
बेनाम यहाँ तक पहुंचा गया है कोई।
~ सूफी बेनाम
दावार - justice ; कातिब - scribe; अदना - insignificant ; ख़ुलूस - purity; बेनाम - nameless and worthless.
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