हर बर्क़-ए-उजाला, चिराग बुझा दिया करो
सिर्फ रातों को इंतज़ार की सज़ा काफी है।
हर लम्हा ना याद, उन इत्तेफ़ाक़ को करो
मौसम को याद-ए-बारिश की सज़ा काफ़ी है।
लिख-लिख के न यूं कागज़ को कुरेदा करो
जज़बात को बारहा इज़हार की सज़ा काफी है।
अल्फाज़ो को बे-इस्बात सहारा ही देते रहो
दीन को एक इत्तेफ़ाक़ी दीदार की सज़ा काफी है।
लुटे रास्तों पे दोस्त, नामाबर कई बेनाम रहे
रिश्तों को बावक़्त बदलने की सज़ा काफी है।
~ सूफी बेनाम
नामाबर - messenger ; बर्क़ - lightening ; बर्क़-ए-उजाला - used for morning; बारहा - repeated; बावक़्त - in time ; बे-इस्बात - unconfirmed ; इत्तेफ़ाक़ी - occasional, by chance .
सिर्फ रातों को इंतज़ार की सज़ा काफी है।
हर लम्हा ना याद, उन इत्तेफ़ाक़ को करो
मौसम को याद-ए-बारिश की सज़ा काफ़ी है।
लिख-लिख के न यूं कागज़ को कुरेदा करो
जज़बात को बारहा इज़हार की सज़ा काफी है।
अल्फाज़ो को बे-इस्बात सहारा ही देते रहो
दीन को एक इत्तेफ़ाक़ी दीदार की सज़ा काफी है।
लुटे रास्तों पे दोस्त, नामाबर कई बेनाम रहे
रिश्तों को बावक़्त बदलने की सज़ा काफी है।
~ सूफी बेनाम
नामाबर - messenger ; बर्क़ - lightening ; बर्क़-ए-उजाला - used for morning; बारहा - repeated; बावक़्त - in time ; बे-इस्बात - unconfirmed ; इत्तेफ़ाक़ी - occasional, by chance .
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.