खुद में
दोबारा जागा था
रौशनी लदी सुबह
फिर हो आयी है।
कुतुबखाने की सारी किताबें
छोटे बड़े शब्दकोश
सबने अपनी जगह
वापस अलमारी में ढूंढ ली है।
कागज़-ज़दा अधूरे मिसरे
टूटे मरोड़े टुकड़े
ज़मीन पे बिखरे हैं
ज़िद्दी बच्चों की तरह।
कोरी किताबों के बेज़ार पन्ने
अनकही बातों का बोझ लेकर
फटकर-छितरकर बहाले-खसतः
दूर रुआंसे से पड़े हैँ ।
शायद डस्टबिन में
जगह मिल जाएगी
उन आम अधूरी बातो को
जो कविता कभी न बन पायीं।
~ सूफी बेनाम
दोबारा जागा था
रौशनी लदी सुबह
फिर हो आयी है।
कुतुबखाने की सारी किताबें
छोटे बड़े शब्दकोश
सबने अपनी जगह
वापस अलमारी में ढूंढ ली है।
कागज़-ज़दा अधूरे मिसरे
टूटे मरोड़े टुकड़े
ज़मीन पे बिखरे हैं
ज़िद्दी बच्चों की तरह।
कोरी किताबों के बेज़ार पन्ने
अनकही बातों का बोझ लेकर
फटकर-छितरकर बहाले-खसतः
दूर रुआंसे से पड़े हैँ ।
शायद डस्टबिन में
जगह मिल जाएगी
उन आम अधूरी बातो को
जो कविता कभी न बन पायीं।
~ सूफी बेनाम
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