ये संग रंग-ए-पलाश है
नफ़स आसमां पे लिखा हुआ
हर रंग नहीं पलाश है
रिन्द-ए-मौसम पे जला हुआ।
तू समझ कि रंग औ ज़िन्दगी
कभी गुज़र नहीं किसी नाम के
वो बेरौनक एक ठूंठ था
जो आज दिखता पलाश है।
ये शाम, ये जज़्ब बहार के
औ ये फूल भी पलाश के
ये खुद परास्त कुछ ख्वाब हैं
चाहे नाम दे या भूल जा।
~ सूफी बेनाम
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