मुझपर तो ऐसे थे गुज़रे
जैसे बादल आया हो बरसात का
और सेहलाब का डर
दिखा के फ़िज़ा गुज़रे।
कभी दोस्त बनना,
अलफ़ाज़ बनना किसी के
किसी को तो शोर सुनाना
स्याह-ए-परछाइयों का।
किसी की सुर्ख -ए -स्याही में
ऐसा बहुत कुछ होगा
जो तुमको डुबो देगा
झिझकना मत।
~ सूफी बेनाम
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