Tuesday, November 26, 2013

गुज़ारिश ...

इन पे दस्तक दे पूछ रहा
क्यों चला गया क्यों फिर आया?

क्या कोई यहाँ पे रहता था
मेरी झूठी याद लिए ?

क्या कोई और यहाँ पे आता है
टूटे-झूठे ख्वाब  लिए ?

कुछ कमरे थे यहाँ सजे  हुए
या धूमिल हैं यादें मेरी

बिछड़ी -कमज़ोर कुछ  आवाजें
बिखरी मरे कानो पर...

टूटी सासों की दरख्वाजें
इन सूनी दीवारों पर..

गर कोई यहाँ से गुज़रे तो
कहना कोई नहीं आया इन टूटे खहंडहारों में

~ सूफी बेनाम



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