इन पे दस्तक दे पूछ रहा
क्यों चला गया क्यों फिर आया?
क्या कोई यहाँ पे रहता था
मेरी झूठी याद लिए ?
क्या कोई और यहाँ पे आता है
टूटे-झूठे ख्वाब लिए ?
कुछ कमरे थे यहाँ सजे हुए
या धूमिल हैं यादें मेरी
बिछड़ी -कमज़ोर कुछ आवाजें
बिखरी मरे कानो पर...
टूटी सासों की दरख्वाजें
इन सूनी दीवारों पर..
गर कोई यहाँ से गुज़रे तो
कहना कोई नहीं आया इन टूटे खहंडहारों में
~ सूफी बेनाम
क्यों चला गया क्यों फिर आया?
क्या कोई यहाँ पे रहता था
मेरी झूठी याद लिए ?
क्या कोई और यहाँ पे आता है
टूटे-झूठे ख्वाब लिए ?
कुछ कमरे थे यहाँ सजे हुए
या धूमिल हैं यादें मेरी
बिछड़ी -कमज़ोर कुछ आवाजें
बिखरी मरे कानो पर...
टूटी सासों की दरख्वाजें
इन सूनी दीवारों पर..
गर कोई यहाँ से गुज़रे तो
कहना कोई नहीं आया इन टूटे खहंडहारों में
~ सूफी बेनाम
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