हर कदम ख्वाब तक
पहुँचते देखा है
ज़िन्दगी को कभी शोर
नहीं करते देखा।
ज़िन्दा रहने की ज़रुरत
बस रही हमको
ख्वाइशों को हमने
क़दमों पे चलते देखा।
एक मुलाक़ात से मेरे
रूह्बरू हों लें तो
एक याद पे
ज़िन्दगी जी लें क्यों ?
शक्ल तो तेरी
कभी मैं जान न सका
रात को सायों में
परछाईयां भी गुम थीं।
थी इतनी करीब
जिंदगानी मेरे
की सांसो का सिर
पहचान न सका।
~ सूफी बेनाम
पहुँचते देखा है
ज़िन्दगी को कभी शोर
नहीं करते देखा।
ज़िन्दा रहने की ज़रुरत
बस रही हमको
ख्वाइशों को हमने
क़दमों पे चलते देखा।
एक मुलाक़ात से मेरे
रूह्बरू हों लें तो
एक याद पे
ज़िन्दगी जी लें क्यों ?
शक्ल तो तेरी
कभी मैं जान न सका
रात को सायों में
परछाईयां भी गुम थीं।
थी इतनी करीब
जिंदगानी मेरे
की सांसो का सिर
पहचान न सका।
~ सूफी बेनाम
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