Saturday, April 15, 2017

वो दिन वापस ला सकती हो

वो दिन वापस ला सकती हो

साकी की वो मीठी य़ादें
बीते लम्हे बीती बातें
साल बयालिस मौसम सारे
क्या तुम वापस ला सकती हो

वो दिन वापस ला सकती हो

आगे धुंधला धुंधला है सब
पीछे घोर अंधेरा है अब
मुझसे जुडकर इक साया बन
खुश मन गाना गा सकती हो

वो दिन वापस ला सकती हो

भीगे दो तन साथ जुडे थे
लगते खारे लब को लब थे
गर्मी की उन दोपहरों को
क्या तुम जीने आ सकती हो

वो दिन वापस ला सकती हो

क्यों ये सीला सूनापन है
भावों की तृष्णा मद्धम है
व्याकुल उजड़ा दिल भरमाने
फिर से वापस आ सकती हो

वो दिन वापस ला सकती हो


क्रमशः

~ सूफी बेनाम


( भीम बेटका की गुफाओं में लिखी एक कविता )

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