कई बार ऐसा होता है
कि तुम घर तो पहुँचते हो
पर बाहर के होकर ही
रह जाते हो।
मैंने देखा है,
सुबह भी,
मन बाहर का होता है;
और फिर उस बाहर की दुनिया में
वापस यूं चले जाते हो
जैसे शाम को घर आओगे।
~ सूफी बेनाम
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