वो लम्हा जो गुज़रते हुए
अफ़सानो पर ज़ाया न हुआ
बस आह बनकर रहता है
वो अफ़साना जो बिछड़ती हुई
ज़िन्दगी में सिमट न गया
एक याद बना देता है
वो ज़िन्दगी जो बिखरती हुई
ख्वाइश से रुखसार न हुई
एक दर्द बनकर खिलती है
वो दर्द जो कोरे कागज़ पर
कुछ स्याह दाग देकर के गया
बेलगाम बना देता है
यूं न बहो मेरे साथ
लम्हों को फिर रोक लेते है
और एक नया दर्द जागते हैं
~ सूफी बेनाम
अफ़सानो पर ज़ाया न हुआ
बस आह बनकर रहता है
वो अफ़साना जो बिछड़ती हुई
ज़िन्दगी में सिमट न गया
एक याद बना देता है
वो ज़िन्दगी जो बिखरती हुई
ख्वाइश से रुखसार न हुई
एक दर्द बनकर खिलती है
वो दर्द जो कोरे कागज़ पर
कुछ स्याह दाग देकर के गया
बेलगाम बना देता है
यूं न बहो मेरे साथ
लम्हों को फिर रोक लेते है
और एक नया दर्द जागते हैं
~ सूफी बेनाम
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